“जनप्रतिनिधि” : ये वो शब्द है जिसके बिना लोकतन्त्र कुछ भी नहीं हो सकता। एक नागरिक अपना काम मस्त होकर करे खुशी खुशी भयरहित, भेदभाव रहित, उसको वो तमाम सुविधाएं मिले, सुरक्षा मिले, भय रहित उसका ईलाका, प्रांत, और देश मिले जो उसने अपने वोट के अधिकार के तहत एक उस व्यक्ति को साझा रूप से सभी नागरिकों ने सौंप दी है। इस प्रोसेस का नाम है “चुनाव” इसी चुनाव से आया है और आता है “लोकतन्त्र” ये ही है लोकतन्त्र का दंगल। और हम इसी सिस्टम से गवर्न हो रहे हैं हम सब। इन सभी का आधार है हमारा कानून और संविधान जो हम सभी नागरिकों की पसंद से है। जो हम सभी के लिए है। कानून और संविधान की नजरों में हम सभी नागरिक समान हैं।
हम द्वारा चुने हुये प्रतिनधि जिनकों हम पार्षद, विधायक और एम. पी. यानि लोकसभा सदस्य कहते हैं। इस सिस्टम को चलाते हैं। सिस्टम को चलाने के लिए एक बॉडी होती है जिसका नाम है “सरकार” ये सरकार इसी कानून और संविधान के तहत चलती है।
इसको चलाने के लिए हजारों लाखों कर्मचारी होते हैं और अलग अलग सिविल सेवाओं के तहत अधिकारी चुने जाते हैं। इसका धन आता है जनता द्वारा चुकाए टैक्स से। यानि जनता के धन से ही चलती है सरकार। सरकार खुद भी आय के साधन जुटाती है।
इस तरह से नेता, अधिकारी और कर्मचारी मिलकर “सरकार” नाम के सिस्टम सयुंक्त रूप से चलाते हैं। जो की उस देश और प्रांत के नागरिकों के लिए काम करती है। ये लोग कोई गलत काम नहीं करे, सभी को न्याय मिले कोई किसी का हक नहीं छीने इसके लिए अलग से न्यायपालिका की स्थापना की गई है। इसमें न्याय करने वाले व्यक्ति को जज या न्यायाधीश नाम दिया गया है। जज या न्यायाधीश जहां बैठता है उसको कहते हैं “कोर्ट” न्यायल्य।
ऐसे ही जैसे हम जनता में किसान, मजदूर, डाक्टर आदी अनेक वर्ग होते हैं।
इस तरह से जनता और सरकार है। जनता ने सरकार को बनाया। और सरकार जनता के लिए है।
वो जन कल्याण और जनता की बेहतरी के लिए काम करती है।
पर आज क्या हो रहा है। MP & MLA & PARSHAD कौन है, कौन जीतता है। सब का सब धन बल, भुज बल, साम दाम दंड भेद का खेल हो गया है। हम जनता को इन्हीं लोगों को अपना काम करने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है ऐसा इन लोगों ने सिस्टम बना दिया है। ईमानदारी से काम करने वाले की पूछ कम होती जा रही है चाहे वो जनता से हो या शासन प्रशासन पर समाज टिका इन्हीं लोगों पर है। हालत ये हैं की 90% संसाधन और धन इन्हीं 10% लोगों के पास है। हम 90% इनकी नजर में गुलाम और कीड़े हैं। ऐसा क्यूँ। बदल दो सिस्टम एक वोट से। एक वोट के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं हैं। जयपुर से हम इसकी शुरुआत करते हैं। जयपुर को विश्व सबसे बेस्ट लोकतान्त्रिक पोलिटिकल डेस्टीनेशन बनाते हैं।
जनता को जगाना और अपनी पसंद को चुनने पर फिर से सोच विचार की जरूरत है। जनता के दिमाग और सोच को मार्केट के तहत दिग्भ्रमित किया जा रहा है। सपने दिखाकर हकीकत से दूर किया जा रहा है।
जो सिस्टम केवल और केवल जनता की वजह से और जनता के लिए है। वो क्यूँ और कैसे चंद लोगों की आँख मिचोली बना दिया गया है।