Jaipur NAGAR NIGAM

ये जरूरी है

जयपुर को सबसे बेस्ट शहर बनाने के लिए जयपुर नगर निगम और जयपुर विकास प्राधिकरण जिसे JDA भी कहते हैं, की है। इन दोनों सरकारी अजेंसियों के बेहतर प्रबंधन, बेहतर काम काज और नतीजों के बिना जयपुर को एक बेस्ट शहर बनाना आसान नहीं है। पर ऐसी कठिनाईयों से पार पाने के लिये भी चिंतन और शोध किया जायेगा।

नगर निगम के बिना जयपुर को साफ स्वच्छ बनाएँ रखना आसान नहीं है। जनता ने तो टैक्स देकर ये जिम्मेदारी नगर निगम और JDA को दे दी है। अब निगम को बेहतर नेटवर्किंग में लाना अहम और बड़ी बात है। सड़कें बनाने से लेकर उन पर क्या चल रहा है उनकी हालात कैसी है ये दोनों ही विभागों का काम है। सड़कों को मिट्टी प्रदूषण से मुक्ति, शहर को प्रदूषण से मुक्ति, सड़कों को गड्डो से मुक्ति और जनता को समयाओं से मुक्ति दिलाना अहम ही नहीं अनिवार्य हो गया है। जितना जल्दी हो सके उतना। हर रोज बढ़्ते हादसे किसे से छिपे नहीं हैं। हाँ ट्रेफीक सिस्टम को सुधारना, कानूनी सख्ती बढ़ाना भी बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है। कानून व्यवस्था का सुधार भी जरूरी है। इसमें जनभागिदारी को जोड़ा जाना नितांत अनिवार्य है।

ये दोनों अजेंसियों में अभी क्या चल रहा है क्या राजनीति चल रही है ये भी समझना अहम है। पर ये दोनों अजेंसियाँ अब कैसे बेहतर काम करें इसके लिए यहाँ के सिस्टम में मेहनती, जागरूक और ईमानदार कर्मचारियों के साथ साथ एक ऐसा शक्स जो मेयर के रूप में राजनीति से आता है और सभी पार्षदों को मिलकर बहुत कुछ विशैश काम करने की जरूरत है। जयपुर की बेहतरी का एक बड़ा हिस्सा आप ही के कंधो पर टिका है। जनता को इसके लिये मंथन करके वोट देना चाहिए। इस मूड सेट की भी अब सख्त जरूरत है। जनता से अपील की जावेगी, समझाया जायेगा की ऐसे किसी भी व्यक्ति को वोट ना दे जो जयपुर के लिए बेकार है या हो सकता है। राजनितिक ऊर्जा का संचरण और परिवर्तन होता रहता है। चुनावों के समय ये उत्सव एक्टिव होकर काम करेगा।

राजनतिक ऊर्जा का संचरण एक जगह से दूसरी जगह, एक देश से दूसरे देश, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक पार्टी से दूसरी पार्टी में होता रहता है। जैसे हाल ही में भारत में हुआ और विश्व राजनीति में भी हो रहा है। ये तब ज्यादा होता है जब जन हित यानि जनता के हितों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। ये तब होता है जब सत्ता पाने वाले अंधे हो जाते हैं। ये तब होता है जब कानून का गलत दुरुपयोग किया जाता है, ये तब होता है जब सत्ता संबधित पार्टी के कार्यकार्ताओं के हाथ में खिसक जाती है, ये तब होता है जब रुलिंग पार्टी में करप्शन का स्तर बढ़ जाता है, ये तब होता है जब सरकार जनता के सवालों का जवाब नहीं देती है, ये तब होता है जब एक व्यक्ति ही पूरी सरकार चलाना चाहता है। ये तब होता है जब हमारी सरकार में विदेशी दखलंदाज़ी बढ़ जाती है, ये तब होता है जब जन्प्रतिनिधियों पर प्रशासनिक अधिकारियों की तानाशाही बढ़ जाती है और इनमें आपसी सामंजस्य का तालमेल नहीं बैठ पाता – भारत की राजनीति इस समस्या से ग्रसित हो चुकी है, ये तब होता है जब संसद और न्यायपालिका अपनी ढपली अपना राग के निर्णय लेनी लगती है और ये तब होता है जब सरकार के मुखिया कोरपोरेटस के हाथों बिकने लग जाते हैं। इस पर विस्तार से चर्चा समय के साथ आगे की जाती रहेगी। हनु रोज “राजनीतिक ऊर्जा का संचरण और परिवर्तन – Political Energy Transformation and Transmission” विषय पर विस्तार से काम कर रहे हैं। ये थ्योरी एक पुस्तक के रूप में हम सब के सामने आयेगी।

इसके साथ नीति नियम, पालन, मैनेजमेंट और भी बहुत से चीजों और कामों की जरूरत है जिसकी चर्चा आगे करते जायेँगे।

इसके साथ साथ हम सब यानि आम जन यानि जनता को भी मेहनती, जागरूक और ईमानदार होना पड़ेगा। हमें एक सजग और जिम्मेदार नागरिक होना चाहिए।

उन तमाम लोगों का विरोध, निंदा, उपहास के साथ साथ उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही चाहे वो जनता से हो या सरकार से। गलत करने पर उनको शहर छोड़ने, पदमुक्त या कार्यालय छोड़ देने पर संवैधानिक रूप से/सिस्टम से बाध्य करना।